शनिवार, 28 अगस्त 2021

Surdas Ka Jivan Parichay Hindi Me - सूरदास का जीवन परिचय - Biography of Surdas in Hindi

 Surdas Ka Jivan Parichay Hindi Me - सूरदास का जीवन परिचय - Biography of Surdas in Hindi 

Biography in surdas kavi

सूरदास ने कृष्ण की बाल-लीलाओं का बड़ा ही विशद तथा मनोरम वर्णन किया है। बाल-जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं, जिस पर इनकी दृष्टि न पड़ी हो। इसीलिए इनका बाल-वर्णन विश्व-साहित्य की अमर-निधि बन गया है। इनकी कविता ब्रजभाषा में है। सूरदास जी हिन्दी साहित्याकाश के देदीप्यमान सूर्य हैं, जिनके समक्ष अन्य जाते हैं।साधारण नक्षत्र बनकर रह जाते है

सूरदास सगुणमार्गी कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। कहा जाता है कि इनका जन्म आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता नामक गाँव में सन् 1478 ई० में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही गाँव में हुआ मानते हैं। इसके अतिरिक्त इनके माता-पिता, कुटुम्बीजनों एवं बन्धु-बान्धवों का कुछ भी पता नहीं चलता। ये बचपन से ही विरक्त हो गये थे। ये गऊघाट पर रहते और विनय के पद गाया करते थे।

  सूर सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास ।

अब के कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश।।

एक बार बल्लभाचार्य जी गऊघाट पर रुके। सूरदास ने उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया। बल्लभाचार्य जी ने इनको कृष्ण की लीला-गान करने का सुझाव दिया। ये बल्लभाचार्य के शिष्य बन गये और कृष्ण की लीला

का गान करने लगे। बल्लभाचार्य ने इनको गोवर्धन पर बने श्रीनाथजी के मन्दिर में कीर्तन करने के लिए रख दिया। गोपियों के प्रेम और विरह का वर्णन भी बहुत आकर्षक है। संयोग और वियोग दोनों का मर्मस्पर्शी चित्रण सूरदास ने किया है। सूरसागर का एक प्रसंग भ्रमरगीत कहलाता है। इस प्रसंग में गोपियों के प्रेमावेश ने ज्ञानी उद्धव को भी प्रेमी एवं भक्त बना दिया।

सूरदास का सम्पूर्ण काव्य संगीत की राग-रागिनियों में बँधा हुआ पद-शैली का गीतिकाव्य है। इसमें भाव-साम्य पर रूपकों की छटा देखने को मिलती आधारित उपमाओं, उत्प्रेक्षाओं और रूपकों की छटा देखने को मिलती हैं। बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने अष्टछाप के नाम से आठ कृष्ण-भक्त कवियों का संगठन किया था। सूरदास इस अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनका गोलोकवास सन् 1583 ई में गोसाई बिट्ठलनाथ के सामने गोवर्द्ध की तलहटी में पारसोली नामक ग्राम में हुआ था। "खंजन नैन रूप रस मा पद का गान करते हुए इन्होंने अपने भौतिक शरीर को छोड़ा।

'सूरसारावली' के अन्तर्गत सरसी तथा सार छन्दों में सूरदास ने 1106 छन्दों की रचना की। 'सूरसारावली' में सूरसागर के बारह स्कन्धों का सार दिया गया है। सूरदास का तीसरा प्रामाणिक ग्रन्थ 'साहित्य लहरी' है। इसमें उनके 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है। सूरदास के पदों का संकलन 'सूरसागर' है। 'सूरसारावली' तथा 'साहित्य लहरी' इनकी अन्य रचनाएँ हैं। यह प्रसिद्ध है कि सूरसागर में सवा लाख पद थे, परन्तु अभी तक केवल दस हजार पद ही प्राप्त हुए हैं।

सूर के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है, इनकी तन्मयता। ये जिस प्रसंग का वर्णन करते हैं, उसमें पाठक को आत्म-विभोर कर देते हैं। इनके विरह-वर्णन में गोपियों के साथ-साथ ब्रज की प्रकृति भी विषादमग्न दिखाई देती है।

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