Essay on Holi, Preface, Time to Celebrate, Describe Holi, Defect and Prevention
होली पर निबंध, प्रस्तावना, मनाने का समय, होली का वर्णन ,दोष एवं निवारण
प्रस्तावना
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। प्राचीन काल से ही मानव त्यौहारों का प्रेमी रहा है। हमारे देश में समय-समय पर किसी न किसी त्यौहार का आयोजन होता रहा है। जैसे-रक्षाबन्धन, दीपावली, दशहरा, होली आदि। इन उत्सवों से मित्रता का भाव भी उत्पन होता है।
मनाने का समय
होली का त्योहार फागण महीने की पूर्णमासी को मनाया (उजवावामा) जाता है। इस समय बसन्त ऋतु का मौसम होता है। होली का प्रारम्भ वसन्त-पंचमी से हो जाता है। यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार है जो एक महीने तक चलता है। इस महीने में होली के गीत व फाग गाये जाते हैं।
सरसों फूली झूम के, भौरे गायें गान
टेसू रागों में रंगे, चले काम के बान।"
"प्रकृति नयी दुल्हन बनी, हुए रंगोली खेत
भीगी मीठी ब्यार से, उड़े पगडंडी की रेत।"
मनाने का कारण
इस उत्सव को मनाने के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं। एक नास्तिक राजा हिरण्यकश्यप था। उसने अपने ईश्वर भक्त पुत्र प्रहाद को ईश्वर से विमुख करने के लिए अनेक कष्ट दिये। अपनी बहन होलिका से कहा कि तुम प्रहाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाओ।
होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह आग में जलेगी नहीं। लेकिन इसका उल्टा हो गया। पुत्र प्रहाद तो बच गया और होलिका जल गयी। इसलिए हर साल होलिका का पुतला दहन किया जाता है
होली के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि भगवान् शंकर ने अपने तीसरे नेत्र को खोलकर कामदेव को जला दिया था इसलिए होलिका दहन होता है।
होली का वर्णन
इस त्यौहार के आगमन के पूर्व ही व्यक्ति रंग और गुलाल फेंकना प्रारम्भ कर देते हैं। प्रत्येक घर में नाना प्रकार के पकवान एवं मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। सभी व्यक्ति बड़े सुन्दर ढंग होली के मधुर गीत गाने लगते हैं तथा आपस में रंग और गुलाल का लगाते हैं। रंग-क्रीड़ा के बाद सभी व्यक्ति स्वच्छ कपड़े धारण करते हैं और सभी प्रेमपूर्वक प्रेम भावएक-दूसरे से मिलते हैं।
होली बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सभी का त्योहार है। सभी आपस अबीर-गुलाल मलते हैं। रंग पानी में घोलकर डालते हैं और खुशियाँ मनाते हैं। रंग की पिचकारियाँ भर-भरकर एक-दूसरे पर डालने में बड़ा आनन्द आता है।
सभी गुजियाँ, मिठाई खाते हैं और एक-दूसरे से गले मिलते हैं। इस त्योहार पर लोग अपनी दुश्मनी भुलाकर गले मिलते हैं और शत्रुता को भूल जाते हैं। इस दिन ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, अफसर-चाकर सब समान होते हैं।
इस त्योहार का सम्बन्ध कृषि से भी है। होली का अर्थ है होला या होरा या कच्चा अन्न। होली के दिनों में चने और गेहूँ के दाने अधकचे-अधपके तैयार हो जाते हैं। उन्हें अग्नि में भूनकर खाने में बड़ा आनन्द आता है। किसान फसल देखकर आनन्दोत्सव मनाते हैं। इसलिए कृषि की दृष्टि से भी यह त्योहार महत्त्वपूर्ण है।
दोष एवं निवारण-
होली का त्योहार हिन्दुओं का श्रेष्ठ त्योहार माना जाता है, फिर भी इस त्योहार में कुछ दोष उत्पन्न हो गये हैं। लोग शराब, भाँग, गाँजा आदि मादक पदार्थों का सेवन करते हैं और दूसरों को भी पेय पदार्थों में मिलाकर पिला देते हैं।कुछ लोग होली के बहाने अपनी दुश्मनी निकालते हैं और लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ लोग दूसरों पर कीचड़ व गुब्बारे फैकते हैं इससे लोगों को चोट भी लग जाती है। हमें इन सब दोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और इस त्योहार को प्रेम और सौहार्दपूर्ण वातावरण में मनाना चाहिए।
उपसंहार
हमारा कर्तव्य है कि हमें त्यौहारों का वास्तविक उद्देश्य समझकर आपस में प्रेमभावनाओं के साथ त्यौहार मनाना चाहिए। नाना प्रकार की कुरीतियों एवं दोषों का त्याग करके त्यौहारों को उचित सम्मान देना चाहिए तथा सामाजिकता का आदर्श स्थापित करना चाहिए.स्योंकि व्यक्ति (लोग) समाज से ही नागरिकता का पाठ सीखता है।
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